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लेखनी प्रतियोगिता -28-Mar-2022 यहां सब गोलमाल है

भाग 2 


( पाठकों की मांग पर इस कहानी को आगे बढ़ाया जा रहा है ) 

अगले दिन प्रवीण थोड़ी देर से जागा था । सिनेमा देखना और बाहर खाना खाने में रात के बारह बज गए थे । सबको सोना था मगर सोना कोई नहीं चाहता था । तो सब लोग अंत्याक्षरी के लिये बैठ गए । दो गुट बन गए । दिव्या और रश्मि प्रवीण की ओर हो गई थीं । अदिति, पूजा, सती और हिना एक तरफ थे । दो घंटा तक चली थी अंत्याक्षरी । रात के दो बज गए थे । 

प्रवीण ऊपर वाले कमरे में सोने चला गया । उसने अपने कपड़े बदले और सो गया । नीद उसकी आंखों से कोसों दूर थी । आंखों के सामने कभी दिव्या का चेहरा आता था तो कभी रश्मि का । कभी ख्वाबों में पूजा आती थी तो कभी अदिति । हिना की एक और सहेली थी जो कम बोलती थी मगर उसकी आंखें भयंकर बोलती थीं । ऐसे लगता था कि जैसे उसे जुबां की तो जरूरत ही नहीं है । आंखें ही बहुत हैं बात करने के लिये । शायद इसीलिए उसका नाम घरवालों ने नैना रखा था । 

वह लाख कोशिशों के बावजूद सो नहीं पा रहा था । इतने में उसे नीचे से कुछ लोगों के ऊपर आने की आवाज सुनाई पड़ी । गौर से सुनने पर पता चला कि ये तो "शैतान मंडली" की आवाज है जो इधर ही आ रही है ।  वह तुरंत समझ गया कि इस शैतान मंडली का शिकार कौन होने वाला है ?  इससे पहले कि वे उसका शिकार कर खा जायें , क्यों ना कुछ ऐसा किया जाये कि सांप भी मर जाय और लाठी भी ना टूटे । प्रवीण का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज गति से दौड़ने लगा । 

समय ज्यादा नहीं था  इसलिए प्रवीण झटके से उठा और चुपचाप बिस्तरों से निकला ।  दो तीन तकिये बिस्तर पर ऐसे लिटाये जैसे बिस्तरों पर कोई सो रहा हो और उन तकियों पर एक चादर ओढ़ा दी । वह तेजी से कमरे के बाहर निकल गया और जाते जाते दरवाजे के बीचों बीच दो तीन स्टूल रख गया जो अंधेरे में दिखाई नहीं दे रहे थे । वह बाहर आकर कमरे में बनी एक खिड़की के पीछे से छुपकर कमरे में होने वाली घटनाओं को चुपचाप देखने लगा । 

ऊपर छत पर "शैतान मंडली" दबे पांव आ रही थी जैसे कोई अजगर अपने शिकार की तरफ दबे पांव धीरे धीरे आगे बढ़ रहा हो । एक लड़की को हलकी सी हंसी आई तो टीम लीडर ने उसे सख्त लहजे में चेतावनी जारी कर दी कि अपनी टुकड़ी दुश्मन देश में प्रवेश कर चुकी है और कोई भी घटना कभी भी घटित हो सकती है । इसलिए खामोश रहो । 

प्रवीण गौर से उन चेहरों को देखकर पहचानने की कोशिश कर रहा था । वैसे तो कृष्ण पक्ष चल रहा था । अंधियारी रात थी लेकिन हुस्न की शमा तो जल रही थी । सब सुंदरियों के चेहरों पर हुस्न की आभा इतनी अधिक थी कि अमावस की रात में भी उनके दमकते चेहरों को बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता था । शायद शैतानी के प्रकाश के कारण वे चेहरे और भी अधिक दमक रहे थे । दिव्या, रश्मि, अदिति, जया और दो तीन लड़कियां और थीं जो कल ही आईं थीं । प्रवीण सबको पहचान गया । 

वह अपनी सांस और धड़कनों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हुए चुपचाप तमाशा देख रहा था । अब वह "गिरोह" उसके दरवाजे के पास आ चुका था । वह कुछ और देख पाता , इससे पहले एक जोरदार आवाज और एक भयंकर चीख पूरे सन्नाटे को चीरकर आरपार निकल गई । विरोधी खेमे में अफरातफरी का माहौल था । तीन चार "जवान" अपनी टांगें पकड़ कर जमीन पर लेट कर "भुजंगासन" कर रहे थे । दरअसल वह आवाज लड़कियों के स्टूल से टकराने की थी और चीख का अंदाज तो आप सब लोग लगा ही चुके होंगे । 

लगता है कि ये "शैतान की नानियां" अपने हाथों में कुछ लेकर चल रही थीं । शायद प्लेट्स में कुछ तरल पदार्थ था और कुछ स्टिक्स वगैरह भी थीं जो पूरे कमरे में बिखर गई थीं । अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मगर रोने, कराहने और घुटी घुटी आवाज में गालियां देने की आवाजें आ रही थी । प्रवीण ने अनुमान लगा लिया था कि वे क्या करने आईं थीं । उनके हाथों में कलर और ब्रश थे । वे चुपचाप सोते हुए प्रवीण के चेहरे को "कलर" करने आईं थीं । मगर यहां तो गिरने के कारण खुद ही उस कलर से काली पीली नीली हो गई थीं । एक बार फिर से सिद्ध हुआ कि औरों के लिए गड्ढा खोदने वाला आदमी पहले खुद उस गड्ढे में गिरता है । 

उन्हें आश्चर्य हुआ कि इतने शोर शराबे के बावजूद मैं जगा क्यों नहीं ? शायद उन्हें शक हो गया था इसलिए उन्होंने एकाएक बिस्तर पर तकियों को ओढ़ाई हुई चादर उलट दी । वे आश्चर्य से चीख पड़ीं । बिस्तर पर केवल तकिये थे । 

प्रवीण तुरंत दौड़कर कमरे में आ गया और उसने लाइट जला दी । सबके चेहरे शर्म से फक्क हो रहे थे । प्रवीण ने झट से अपना मोबाइल निकाला और खटाखट फोटो लेना शुरू कर दिया । किसी के चेहरे पर कलर लग गया था तो किसी के हाथ पांव रंग से बेरंग हो गए थे । किसी के कपड़ों पर अलग अलग आकृतियों के धब्बे पड़ गये थे । कोई अपने पैर पकड़ कर नीचे जमीन पर ही लेटी पड़ी थी तो कोई नागिन की तरह लहरा रही थी । उनके चेहरों पर खीझ, वेदना और लुटने पिटने के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे । 

प्रवीण ने उनसे हमदर्दी जताते हुए कहा "अरे रे ये क्या हुआ ? शिकारी शिकार करने आये थे और खुद ही शिकार हो गए । सो सैड ! तो गर्ल्ज, टैल मी, व्हाट कैन आई डू फॉर यू" ? 

टीम लीडर दिव्या ही थी । "हंस लो और मजे ले लो , हमारी हालत पर । पर बच्चू हमसे बचोगे कब तक ? आखिर एक न एक दिन तो हमारे जाल में फंसोगे ही । आज तुम्हारी जीत है तो कल हमारी होगी" । 

वह लड़कियों की ओर मुड़ी और बोली " कम ऑन गर्ल्ज । लैट्स गो" । 

कुछ लड़कियों को तो खड़े होने में भी तकलीफ आ रही थी । प्रवीण इतना निर्दयी भी नहीं था । वैसे भी लड़कियों की पीड़ा देखकर तो हमारे देश में नौजवान तो क्या बुड्ढे भी पिघल जाते हैं और कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं । प्रवीण ने अपना हाथ मदद करने के लिये आगे बढ़ाया मगर लड़कियों ने उसे झटक दिया । एक लड़की ने जिसके हाथ पर कलर फैल गया था , उसने उस हाथ को प्रवीण के कपड़ों से पोंछ दिया । अब तो बाकी लड़कियों के लिए भी क्लू मिल गया । बाकी सबने भी प्रवीण को रंगना शुरू कर दिया । छ: सात लड़कियों  के बीच में बेचारा प्रवीण क्या कर लेता ? फिर वह लड़कियों के साथ छीना झपटी भी नहीं कर सकता था । इससे लड़कियों के नाजुक अंगों के छूने का खतरा जो था । वह भी चुपचाप बैठा रहा और सभी लड़कियां उसे "शिव जी" के अभिषेक की तरह रंगने में व्यस्त हो गई । हां , उसने यह जरूर किया कि अपने  पुते चेहरे से दो चार लड़कियों के चेहरे भी पोत दिये । उसे इसी में ही आनंद आ गया । 

इसी घटना के कारण वह रात में काफी लेट हो गया था । बाद में बाथरूम में कलर साफ करने में उसे एक घंटा लग गया । 

वह नौ बजे जागा । सबसे पहले तो उसने आईना देखा । कुछ कलर बाकी रह गया था । वह उसे साफ करने में लग गया । जब सब कुछ साफ हो गया तब वह नीचे आया । 

नीचे का माहौल बड़ा शानदार था । रात की सारी घटना की जानकारी सबको हो गई थी । सब लोग प्रवीण की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा कर रहे थे और लड़कियों को उनकी मूर्खता के लिए उलाहने दे रहे थे । प्रवीण की दीदी ने कहा "तू तो सचमुच का हीरो निकला रे । शेर की तरह कैसे लोमड़ियों को एक ही वार में चित्त कर दिया तूने । वाह मेरे शेर । शाबास" । 

इससे उन लड़कियों की मम्मी, बहनें और दूसरी रिश्तेदार चिढ गईं और सबने उन दोनों भाई बहनों को निशाने पर ले लिया । इतने में प्रवीण के सामने नाश्ता लग गया था । पनीर सैंडविच और फ्राइड इडली । जैसे ही प्रवीण सैंडविच में से एक बाइट लेने को तैयार हुआ उसे "नमक वाली खीर" याद आ गई । वह तुरंत ठिठक गया । इस सैंडविच में पनीर के अलावा और क्या हो सकता है ? वह अभी सोच ही रहा था कि ज्योति बोल पड़ी "खाइये ना , रुक क्यों गये ? बहुत टेस्टी हैं ये । मम्मा ने बनाईं हैं । मेरी मम्मा बहुत बढिया कुक हैं । ऐसी सैंडविच पहले कभी खाई नहीं होगी " ? 

प्रवीण को अब विश्वास हो गया था कि इन सैंडविचों को खाना अपनी मौत बुलाने जैसा है । इसलिये वह बिना कुछ खाये पीये उठ खड़ा हो गया । तब उसकी दीदी ने कहा "अरे ये क्या ? बिना नाश्ता किये ही" ? 

"हां दीदी , दरअसल भूख नहीं है आज" । 
"मुझे सब पता है । तू क्या समझता है कि मैं तेरे दिल की बात जानती नहीं ? अरे , तेरी बड़ी बहन हूं मैं । तेरे से दो कदम आगे । चल नाश्ता कर । इनमें कुछ भी नहीं है । मैं कह रही हूं । चल चुपचाप खा ले" । 

प्रवीण को यद्यपि विश्वास नहीं हो रहा था मगर दीदी की बात पर अविश्वास भी नहीं किया जा सकता है । मरता क्या न करता । उसने पनीर सैंडविच की एक बाइट ले ली । मिर्च के मारे उसका पूरा मुंह लाल ह़ो गया । उसकी चीख निकल गई और आंसुओं की झड़ी लग गई । 

पीछे से एक जोरदार आवाज आई "वो मारा । मजा आ गया भाभी । यू आर ग्रेट भाभी । आखिर आपने नारी शक्ति की लाज रख ही ली" । 

प्रवीण अविश्वास से दीदी को देखे जा रहा था । दीदी उसके साथ ऐसा करेंगी , ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था । वह इस "धोखे" से संभल नहीं पाया था कि दीदी रसमलाई लेकर हाजिर हो गई और अपने हाथ से उसे रसमलाई खिलाने लगी । 

प्रवीण ने गुस्से से दीदी का हाथ झटक दिया । "मुझे नहीं खाना , कुछ भी" । विश्वासघात से बुरी चीज कोई नहीं होती है । जिन पर जान से भी ज्यादा विश्वास करें और वही व्यक्ति अगर विश्वासघात कर दे तो ऐसा ही होता है । सालों लग जाते हैं विश्वास हासिल करने में और टूटने में एक पल भी नहीं लगता है । 

"सॉरी, सॉरी, सॉरी" । दीदी कहने लगी । "मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था प्रव" । वे प्रवीण को प्रव ही कहती थीं । "मैं भी क्या करती ? कल रात की घटना से ये सभी लड़कियां बहुत ही अपसेट थीं । बदला लेने पर उतारू थीं । मगर उनको पता था कि उनकी बनाई हुई कोई भी चीज तुम नहीं खाओगे । इसलिए इस षड़यंत्र में उन्होंने मुझे शामिल किया । उनकी दुर्दशा को देखकर मेरे मन का भी "नारीवाद" जाग उठा और मैं इस षडयंत्र की मुख्य साजिशकर्ता बन गई । मगर आज के बाद मैं विश्वास दिलाती हूं कि अब खाने पीने के सामान के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी" । 

प्रवीण दीदी की बातों पर मुस्कुरा दिया । एक विश्वासहंता यह विश्वास दिला रही है कि अब आगे विश्वासघात नहीं होगा । इससे बड़ा जोक और क्या होगा ? 

दीदी ने उसे अपनी कसम खिला दी । भारत में विश्वास दिलाने का यह अद्भुत नुस्खा है । कसम के आगे सब कुछ फेल है । प्रवीण को भी विश्वास करना पड़ा । 

शेष अगले अंक में 

हरिशंकर गोयल "हरि"
29.3.22 

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3 Comments

Abhinav ji

03-Apr-2022 08:18 AM

बहुत खूब sir

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Gunjan Kamal

29-Mar-2022 11:18 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Hari Shanker Goyal "Hari"

29-Mar-2022 03:50 PM

💐💐🙏🙏

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